विश्व भर में मानव तस्करी एक गैर-कानूनी घटना के रूप में, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए नियमित रूप से जारी है। यह देशों के भीतर और क्षेत्रों एवं महाद्वीपों में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार होती है। यह एक बहुआयामी जटिल समस्या भी है, जिसमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को शिकार बनाया जाता है।
ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार, “तस्करी” शब्द का अर्थ है किसी वस्तु का गैर-कानूनी लेन-देन या व्यापार। इस प्रकार, मादक पदार्थों की तस्करी, हथियारों के अवैध व्यापार, या मानव तस्करी का अर्थ है मादक पदार्थों, हथियारों या मनुष्यों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर गैर-कानूनी स्थानांतरण। मानव तस्करी का तात्पर्य मनुष्यों के शोषण की आपराधिक प्रथा से है, जहाँ उन्हें लाभ की वस्तु माना जाता है और मानव तस्करी के बाद लंबे समय तक उनका शोषण किया जाता है।
इस प्रकार, मानव तस्करी में बलप्रयोग, धमकी, अपहरण, छल या धोखाधड़ी के माध्यम से, कानूनी या गैर-कानूनी तरीकों से, सीमाओं के भीतर या पार, व्यक्तियों की भर्ती, अपहरण, परिवहन, शरण, स्थानांतरण, बिक्री या प्राप्ति (व्यक्तियों को बंधुआ या गुलाम जैसी स्थितियों में रखने, जबरन श्रम या अन्य सेवाएँ लेने, जैसे कि जबरन वेश्यावृत्ति या यौन सेवाएँ, घरेलू गुलामी, मिठाई की दुकानों में बंधुआ श्रम या कर्ज के कारण बंधुआ श्रम से संबंधित सभी गतिविधियाँ शामिल हैं।
मानव तस्करी पीड़ितों को मूल निवास स्थान से गंतव्य तक ले जाने के लिए विभिन्न तरीके अपनाती है। कई मामलों में लोगों को लुभाने और धोखा देने के लिए नौकरी और व्यक्तिगत संबंधों का उपयोग किया जाता है। कुछ मानव तस्कर अकेले या छोटे समूहों में काम करते हैं, जो विशिष्ट उद्देश्यों के लिए लोगों की तस्करी करते हैं। पति-पत्नी की टीम अक्सर घरेलू काम के लिए महिलाओं की तस्करी करती है और उन्हें वर्षों तक गुलाम जैसी स्थिति में रखती है। मानव तस्कर दोस्त, परिवार के सदस्य या पड़ोसी भी हो सकते हैं।
मानव तस्करी का प्रभाव केवल पीड़ितों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सामान्य रूप से यह पूरे समाज को प्रभावित करता है। मानव तस्करी का यह अपराध, जो गुलामी प्रथा से जुड़ा है, मानवता के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। अत्यधिक विकसित देशों में और अत्यधिक प्रगतिशील समय में लोगों का अमानवीय खरीद-फरोख्त मानव सभ्यता और आत्मा का सीधा अपमान है। मानव तस्करी में देखी जाने वाली निर्ममता मानवता के पतन का एक और उदाहरण है और मानवता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि समाज से इस खतरनाक बुराई को हमेशा के लिए मिटा दिया जाए। इसलिए, इस गंभीर समस्या के सभी पहलुओं और कारणों से निपटने के लिए एक प्रभावी और व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। मानव तस्करी मानवता की मूल अवधारणा के लिए एक चुनौती है और समय की माँग है।
पिछले दो दशकों के दौरान विश्व भर में, विशेष रूप से दक्षिण एशिया में, मानव तस्करी की घटनाएँ खतरनाक स्तर तक बढ़ी हैं। यह क्षेत्र मानव तस्करी से पीड़ितों का एक प्रमुख स्रोत और गंतव्य बनने के साथ-साथ पारगमन स्थल भी बन गया है। इस क्षेत्र में अपने देश के भीतर और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की उनकी इच्छा के विरुद्ध जबरन गुलाम बनाने के लिए तस्करी की जाती है।
1998 के कोलंबो, श्रीलंका शिखर सम्मेलन में मानव तस्करी पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया गया। मानव तस्करी को रोकने और उसका मुकाबला करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। विशेष रूप से इसमें अधिकार क्षेत्र और प्रत्यर्पण कानूनों को राज्य की सीमा के बाहर भी लागू करने की आवश्यकता को स्वीकार किया गया, जिसमें यह प्रावधान भी शामिल है कि समझौता प्रभावी होना चाहिए और समझौते के राज्य पक्षों के बीच संबंधित राज्यों के बीच प्रत्यर्पण संधि न होने के बावजूद अपराधियों पर मुकदमा चलाना या प्रत्यर्पण करना अनिवार्य है।
वर्तमान में भारत मानव तस्करी का एक प्रमुख स्रोत और गंतव्य होने के साथ-साथ श्रम या यौन शोषण के लिए पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की तस्करी का पारगमन स्थल भी बन गया है। पश्चिम एशियाई देशों में भारतीय महिलाओं और पुरुषों को श्रम के लिए मजबूर किया जाता है और बच्चों, विशेष रूप से छोटे लड़कों का उपयोग ऊँट दौड़ जैसे खेलों के लिए किया जाता है। बांग्लादेशी महिलाओं और बच्चों को यौन शोषण, घरेलू काम और जबरन श्रम के लिए अवैध रूप से भारत लाया जाता है या उन्हें भारत के रास्ते पाकिस्तान और पश्चिम एशिया भेज दिया जाता है।
भारत सरकार ने मानव तस्करी से पीड़ितों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित कानून बनाकर कुछ प्रयास भी किए हैं:
- बंधुआ श्रम प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976
- बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986
- भारतीय दंड संहिता – धारा 366, 366 बी, 367, 372, 373, 375, 319-338, 351, 354, 362, 339-348, 463-477 (धारा 107-120 का भी उपयोग मानव तस्करी मामलों में किया जा सकता है)।
- बाल न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000
- मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994
- गुड़िया बाल कानून, 2003
- देवदासी प्रथा (निषेध) अधिनियम, 1982
- आंध्र प्रदेश देवदासी प्रथा (निषेध और दंड) अधिनियम, 1989
- अनैतिक व्यापार (निषेध) अधिनियम, 1956 (ITPA)
मानव तस्करी को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए सुझाव:
- पिछले वर्षों में विदेश जाने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसके कारण प्लेसमेंट ऑफिस भी बढ़ गए हैं। प्लेसमेंट ऑफिस संचालकों का कहना है कि किसी भी बेरोजगार के साथ धोखा न हो, इसके लिए बेरोजगारों को जाने से पहले यह तय कर लेना चाहिए कि उन्हें किस देश और किस कंपनी में जाना है। साथ ही कितनी तनख्वाह चाहिए। यह सब पहले तय कर लेने से बाद में उन्हें समस्याओं से जूझना नहीं पड़ता। तय करने के बाद ही अपना पासपोर्ट प्लेसमेंट एजेंसी के हवाले करना चाहिए। इससे उनके साथ किसी भी तरह का धोखा होने की संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं।
- विदेश जाने की इच्छा रखने वाले बेरोजगार युवाओं को धोखे से बचने के लिए केवल लाइसेंसधारी प्लेसमेंट एजेंसियों से ही संपर्क करना चाहिए। पासपोर्ट सौंपने से पहले यह तय कर लेना चाहिए कि जिस एजेंसी से संपर्क कर रहे हैं, वह लाइसेंसधारी है या नहीं। साथ ही किसी के प्रलोभन में न आएँ और पूरी जाँच-पड़ताल करने के बाद ही एजेंसी को अपना पासपोर्ट सौंपें। ताकि अपनी मेहनत की कमाई को लुटने से बचा सकें और विदेश जाकर कम वेतन वाली नौकरी मिलने पर पछताना न पड़े।
- नाम बदलकर विदेश जाने वालों को हर बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके बाद भी यह सिलसिला थमता नहीं है। प्लेसमेंट एजेंसियों के संचालकों का कहना है कि कुछ कारणों से कई लोगों के पासपोर्ट जब्त हो जाते हैं और वे दूसरी बार नाम बदलकर पासपोर्ट बनवाते हैं, लेकिन एयरपोर्ट पर फिंगरप्रिंट की जाँच में पकड़े जाते हैं और वापस देश भेज दिए जाते हैं। ऐसे में कई बेरोजगार इसका दोष प्लेसमेंट एजेंसी के सिर मढ़ देते हैं, जबकि उनकी कोई गलती नहीं होती।
- दुबई, इराक, ईरान, मलेशिया, बहरीन, कतर, सऊदी अरब आदि खाड़ी देशों में सबसे अधिक माँग सोफ्टवेयर ड्राइवर, मजदूर, टाइल मेसन, ब्लॉक प्लास्टर, मेसन, कारपेंटर, वॉल पेंटर, सेटिंग कारपेंटर आदि की रहती है। ऐसे में इन देशों में जाने वाले बेरोजगारों को सबसे पहले अपने कार्य की कुशलता एवं निपुणता को परख लेना चाहिए। क्योंकि कई बार अकुशल व्यक्ति को वहाँ जाने के बाद परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार तो उन्हें इसी वजह से वापस देश भी लौटना पड़ता है। ऐसे में दोष प्लेसमेंट एजेंसी के माथे मढ़ना गलत है।
- विदेशों में रोजगार की इच्छा रखने वाला व्यक्ति आमतौर पर गरीब और साधनहीन होता है। ऐसे में साहूकार या सूदखोर ऋण या ट्रैवल एजेंसी इन्हें गैर-सरकारी तौर पर ऊँची ब्याज दर, रहन या जमानत रखकर धन या कर्ज उपलब्ध कराते हैं और विदेशों से वापसी पर मनमाने पैसे वसूलते हैं। फलस्वरूप इनके जीवन स्तर में पर्याप्त सुधार नहीं आ पाता। अतः ओवरसीज एम्प्लॉयमेंट कॉर्पोरेशन या रोजगार विभाग सरकारी बैंकों या स्वयं के साधनों से मदद कर सकता है।
- विदेश में रोजगार चाहने वाले लोगों को सामाजिक सुरक्षा योजना जैसे पेंशन, बीमा, बीमारी पुनर्भरण, पेंशन आदि की व्यवस्था आमतौर पर नहीं हो पाती। ऐसे में सरकार प्रभावी भूमिका निभा सकती है।
- व्यावहारिक तौर पर यह देखने में आया है कि ट्रैवल एजेंसियाँ कम अवधि/यात्रा व्यय पर कामगारों को विदेश पहुँचाकर उन्हें वीजा नियमों के उल्लंघन में जेल तक पहुँचा देती हैं। अतः इस व्यवस्था को विनियमित किया जाना आवश्यक है।
- आमतौर पर ट्रैवल एजेंसियाँ अपने द्वारा भेजे जाने वाले कर्मचारों की पुष्टि के लिए कोई कार्रवाई नहीं करतीं। अतः कई बार पहचान की समस्या रहती है। अतः रोजगार विभाग प्रशासन के सहयोग से “ई-पहचान पत्र” जारी करे ताकि कामगारों को सामान्य परेशानियों से बचाया जा सके।
- इसके अलावा इस क्षेत्र के औद्योगिक और व्यावसायिक विकास के लिए राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करना उचित रहेगा। इस क्षेत्र में भूमि का एक बड़ा हिस्सा बंजर पड़ा है। यदि उचित प्रोसेसिंग हो और अन्य खनिज इस क्षेत्र में मिल जाएँ तो रोजगार, औद्योगिक क्षेत्र में अच्छी उपलब्धि हो सकती है।
- जिला ग्रामीण विकास अधिकरण अपनी गतिविधियाँ यहाँ के श्रमिकों के प्रशिक्षण के लिए बढ़ा सकता है। जिन व्यवसायों में श्रमिकों को विदेशों में रोजगार मिलता है, उनके लिए सामान्य प्रशिक्षण की व्यवस्था हो जाए तो उचित रहेगा।
- मानव तस्करी विरोधी अभियान से सभी को जुड़ना चाहिए। इस अभियान में हर एक को सहयोग और सहमति के साथ अपनी भूमिका निभानी चाहिए, तभी श्रेष्ठ परिणाम सुनिश्चित किए जा सकते हैं, जिससे मानव तस्करी को रोका जा सके।
मानव तस्करी ऐसा विषय है जिसका संबंध सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से है। इसके बारे में हर कोई कुछ न कुछ कर सकता है और करना चाहिए। यह सभी से संबंधित विषय है। सच्चाई यह है कि हर व्यक्ति या तो समस्या का हिस्सा है या समाधान का। इस संबंध में कोई तीसरा विकल्प नहीं है। इसलिए इस समस्या के समाधान के लिए किए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में हर समर्पित व्यक्ति को शामिल होकर योगदान देना चाहिए। हम सभी मिलकर और एकजुट होकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि घर और समाज में लोग सुरक्षित रह सकें और हम सभी की तरह गरिमा के साथ जीवन बिता सकें।
– डॉ. महेंद्र सिंह
(प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग)
मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय,
माधव विश्वविद्यालय, पिंडवाड़ा (सिरोही), राजस्थान