A digital illustration depicting five figures involved in storytelling, cultural exchange, and women's empowerment in contemporary Hindi literature, set against a vibrant landscape.

सामाजिक प्राणी के रूप में कहानी कहने और सुनने की आदिम वृत्ति व्यक्ति को सामाजिक संजीवनी प्रदान करती है। व्यक्ति जब अपने जीवन के अनुभवों और संवेदनाओं को दूसरों के साथ साझा करना चाहता हैतो कहानी का प्रारम्भ होता है। यह एक मानवीय अभिव्यक्ति का माध्यम है जो सामाजिक संबंधों को समझने और साझा करने का मौका देती है। कहानी सिर्फ आत्म अभिव्यक्ति का माध्यम बल्कि यह आगे बढ़कर मानवीय संबोधन और संवाद का भी माध्यम है। 

कहानी के माध्यम से व्यक्तियों की भावनाओं, संवेदनाओं और सोच को प्रस्तुत किया जाता हैंसाथ ही जीवन के संघर्षों, सफलताओंऔर विफलताओं का व्यापक चित्रण भी कहानी के माध्यम से किया हैं। कहानी विभिन्न समाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। हिंदी कहानी ने अनुभव एवं शिल्प के स्तर पर कई प्रयोग किये है। कहानीको समय के साथ-साथ विभिन्न परिवर्तनों के कारण नई कहानी, सचेतन कहानी, अकहानी, अगली शताब्दी की कहानी,कहानी जैसे कई नामों से सूचित किया जाने लगा है। 

 हिंदी कहानी की प्रवृतियां

हिंदी कहानीकारों ने अपने समय, समाज के बदलाव और विकास की प्रक्रियाओं को गहराई से समझते हुए कहानी की दुनिया को गढ़ा है। इस दौर की कहानियों में सर्जनात्मकता और कहानी बुनने की प्रक्रियाएँ इतनी जटिल और विविध हैं कि उनका गहन विचार और आकलन करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता है। समकालीन कहानियों में जीवन के विभिन्न पहलुओं को उभरते हुए देखा जा सकता हैजिनमें समाज के संघर्षों, परिवर्तन और विकास की प्रक्रियाओं को प्रमुखता से स्थान मिला है। इस दौर की कहानियों ने न केवल समाज के मौजूदा यथार्थ को बखूबी चित्रित किया हैबल्कि सामाजिक-राजनीतिक बदलावों की बारीकियों को भी व्यापक दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया है।

हिंदी कहानी की दुनिया में विषयों की व्यापक विविधता दिखाई देती है। सामाजिक संघर्षों के साथ-साथ स्त्री और दलित जीवन के इतिहास को यह कहानियाँ गहराई से दर्शाती हैं। सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक उदारीकरण भूमंडलीकरण जैसी प्रक्रियाएँ इन कहानियों पर स्पष्ट रूप से प्रभाव डालती हैं। साथ हीस्त्री शोषण, स्त्री अस्मिता और स्त्री चरित्र के बदलते प्रतिमानों ने भी इन कहानियों को नई दिशा दी है। इन कहानियों में स्त्री जीवन के संघर्षों और सामाजिक-आर्थिक बदलावों के साथ जुड़ी जटिलताओं को भी प्रभावी रूप से उभारा गया है। कहानी में इन मुद्दों को गहराई और गंभीरता के साथ प्रस्तुत किया गया हैजिससे यह साहित्यिक विधा और अधिक समृद्ध हुई है।

हिंदी कहानी में भूमण्डलीकरण

भारतीय समाज और व्यवस्था में भूमंडलीकरण और उदारीकरण की प्रक्रियाओं के फलस्वरूपसमाज में संरचनात्मक और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैंसाथ ही राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन भी हुए हैं।भूमंडलीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार में एकीकृत किया है। यह विदेशी निवेश, विदेशी व्यापार, और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय परिवर्तनों के माध्यम से हुआ है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था केविकास में तेजी आई हैलेकिन साथ ही कुछ समस्याएं जैसे आर्थिक असमानता और सामाजिक विषमता भी उत्पन्न हुई है।

उदारीकरण और भूमंडलीकरण के कारण समाज शिक्षा, व्यवसाय, और सामाजिक संरचना में विभिन्नता और नई सोच का प्रवेश आदि परिवर्तन दृष्टिगोचर होते है। ये प्रवृतियां साहित्य को भी प्रभावित करती है जिससे कहानी विधा के विषयों में व्यापक वृद्धि हुई है।गौरीनाथ ने इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करते समय हंस  में लिखा कि- “ग्लोबलाइजेशन या बाजारीकरण भौतिक रूप से हमारे लिए इतना खतरनाक नहीं है जितना अदृश्य रूप से हमारे मानसिक धरातल पर इसके प्रभाव दिख रहे हैं। ये हमें इकाई में तोड़कर व्यस्त और परेशान कर देना चाहते हैं ताकि हम समूह के हित के लिए कुछ सोचने का समय ही न निकाल सकें।”

हिंदी कहानी में उपभोक्तावाद

उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद की प्रक्रिया ने व्यक्ति के मन, विचार को बदलकर एक ऐसी समानांतर धारा का निर्माण किया की परंपरा के साथ द्वंदात्मक रूप से विचार मंथन करना आवश्यक हो गया।व्यक्ति एक ऐसी स्थिति में आ पहुंचा जहां उसके पास उन्मुक्त विकास के बड़े-बड़े सपने हैं। विश्व ग्राम की अवधारणा ने विकास और निर्माण के नए स्वरूप को प्रस्तुत किया। बाजारवाद के कारण मनुष्य वित्तीय बाजार का हिस्सा होकर मानवीय संस्कृति और परंपराओं से कट कर धीरे-धीरे बाजार का ही हिस्सा बनता जा रहा है।

उपभोक्तावादी संस्कृति भूमंडलीकरण की ही देन हैजिसने लोगों को संवेदनशून्य और हृदयहीन बना दिया है। इनके लिए बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरूष, देशी, विदेशी, शासन, राजा सब बराबर हैं। कहानीकार काशीनाथ ने अपनी कहानी में एक जगह इस तथ्य पर प्रकाश डालते है कि- “देखो और सोचो तो ये बच्चे नहीं, भविष्य हैं और इनके लिए एक ही रास्ता है- मल्टीनेशनल। भरो इनके दिमाग में कि यह रही तुम्हारी मंजिल। पहुँचना है वहाँ। पाना है इसे। दूसरे पहुँच पाये, उससे पहले।” अर्थात वे एक होड़ वाली संस्कृति को जन्म देना चाहते हैं जहाँ व्यक्ति अपने अलावा किसी और के विषय में सोच भी न सके। उनकी दृष्टि में बच्चे, बूढ़े, औरतें सब के सब बाजार के लिए माध्यम है।

हिंदी कहानी में स्त्री शोषण एवं स्त्री अस्मिता

हिंदी कहानी में स्त्री समाज की उपस्थिति ने इसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विद्या के रूप में प्रस्तुत किया है। 1960 के दशक के बाद साहित्य खासकर कथा के क्षेत्र में स्त्रियों ने न केवल बौद्धिक जगत में हस्तक्षेप किया अपितु विभिन्न आंदोलनों से जुड़कर रचना और विचार की दुनिया में भी अपनी पहचान को स्थापित किया। समकालीन साहित्यकारों ने स्त्री जीवन की विडंबना, स्त्री शोषण, स्त्री जीवन की समस्याओं को अपनी कथाओं को में प्रमुखता से चित्रित किया है। कृष्णा सोबती ने अपने उपन्यास मित्रों मरजानी, मृदुला गर्ग ने चितकोबरा में देहमुक्ति को भी स्त्री मुक्ति का एक बड़ा रास्ता बताया है। 

महादेवी वर्मा ने श्रृंखला की कड़ियांकहानी में स्त्री की सामाजिक अस्मिता को महत्व देते हुए स्त्री अधिकारों की पैरवी की है। समकालीन युग में स्त्री लेखन की दो धाराएं दिखाई पड़ती है। पहली धारा नवजागरण की परंपरा से प्रभावित है तो दूसरी पश्चिम से प्रभावित होते हुए पितृसत्ता को चुनौती देती है एवं शोषण से मुक्ति, स्त्री विमर्श, स्त्री अस्मिता आदि से जोड़ती है। इन कहानीकारों में मन्नू भंडारी, चित्रा मुद्गल, कृष्णा सोबती, अनामिका, मैत्रेयी पुष्पा, मृदुला गर्ग, रमणिका गुप्ता आदि प्रमुख है। इन कहानीकारों ने कहानी में स्त्री की सामाजिक अस्मिता को स्थापित करते हुए स्त्री लेखन को नवीन दिशा प्रदान की है 

हिंदी कहानी में स्त्री चरित्र के बदलते प्रतिमान

समकालीन युग में आधुनिकता एक चुनौती बनी तो कहानी की प्रकृति तथा प्रवृत्ति ही बदल गयी। कहानी के दौर में यथार्थ का रूप और भी अधिक प्रखर हो उठा और कहानिकारों ने स्त्री के दुख-दर्द को अधिक गहराई से उभारा। उस समय महिला कहानीकारों ने जो देखा और भोगा उसे ग्रहण कर पूरे तीखेपन के साथ अपनी कहानियों में उतारा। इसलिए उन कहानियों में पाखंड, अन्याय, शोषण, अत्याचार तथा मिथ्या आदर्शों एवं मूल्यों के प्रति स्त्री प्रतिरोध का भाव दिखाई देता है।

नारी की अथाह शक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किस प्रकार नारी अनेक प्रकार की भूमिकाएं निभाती है। सास, बहू, बेटी, पत्नी आदि सभी में सामंजस्य केवल नारी ही स्थापित कर सकती है। इन स्वरूपों को एक सबला नारी ही जीवंत बना सकती है और यही स्वरूप हमें नारी जीवन के विभिन्न पहलुओं से अवगत करवाता है कि नारी शक्तिमान है।

हिंदी कहानी में सांप्रदायिकता एवं राजनीतिक क्षेत्र में नारी

साहित्य और राजनीति का संबंध सदैव रहा है। इन दोनों का केन्द्र बिन्दु समाज है। साहित्य ने अपनी अनुभूति के दायरे में रहकर समाज के राजनीतिक पहलुओं की अभिव्यक्ति एवं कल्पना से समाज पर अपना अमिट प्रभाव डाला है। राजनीति के दुष्चक्र में पिसकर कराहती और विद्रोह करने के लिए उतारू आम जनता की छवी को आइने के समान साहित्य प्रतिबिम्बित करता है। राजनीति साहित्य से अलग होकर नहीं रह सकती अगर रहे भी तो वह अपना आदर्श को खो देगीक्योंकि उस आदर्श में जन जीवन का हित निहित है। आधुनिक युग में राजनीति का पटल विस्तृत हो गया है। वह केवल स्वदेश से ही नही संपूर्ण विश्व से प्रभावित है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में राजनीति उपस्थित है।

हिंदी कहानी में सांप्रदायिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी का स्तर न्यून रहा है। कहानीकारों ने अपनी कहानियों में कहीं-कहीं नारी के राजनीतिक जीवन को संदर्भित अवश्य किया है। महिला कहानीकारों ने अपनी कहानियों में राजनीतिक जीवन एवं संप्रदायिकता के प्रभाव को प्रदर्शित करते हुए अपने कहानियों के कथानकों को नवीन विषय प्रदान करने का भी प्रयास किया है।

Dr. Renuka, Assistant Professor

Hindi Department, Madhav University

By Madhav University

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