विकासशील देशों की सूची में भारत एक प्रमुख स्थान रखता है। यहाँ आर्थिक विकास, औद्योगीकरण, और शहरीकरण की गति तेज़ी से बढ़ रही है। परंतु इस तीव्र विकास की एक भारी कीमत भी चुकानी पड़ रही है – वह है “प्रदूषण”। आज भारत के अधिकांश बड़े शहर, विशेष रूप से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, जयपुर और लखनऊ जैसे महानगर, प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। यह प्रदूषण केवल वायु तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जल, ध्वनि, मिट्टी तथा प्रकाश प्रदूषण के रूप में भी सामने आ रहा है। इसका व्यापक प्रभाव मानव जीवन, जैव विविधता, और जलवायु पर पड़ रहा है।
1. प्रदूषण के प्रकार और उनके स्रोत
1.1 वायु प्रदूषण:
वायु प्रदूषण भारतीय शहरों में सबसे बड़ा और चिंताजनक प्रदूषण है। वाहनों से निकलने वाला धुआँ, फैक्ट्रियों का उत्सर्जन, निर्माण कार्य, पटाखे, और पराली जलाना – ये सब वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं। खासकर सर्दियों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर पर पहुँच जाता है, जिससे लोगों को साँस की बीमारियाँ होती हैं।कोरोना काल में ओक्सीजन की कमी के कारण लोगो की मोंत हो रहीं थी और सरकार के पास संसाधन नही थे अस्पताल में व्यक्तिओ को ओक्सीजन सिलेंडर नही मिल रहे थे| लोग पेड़ के नीचें शुध हवा के लिए जा रहे थे आधुनिक दौर में हम पेड़ो की अंधाधुध कटाई कर रहे है आज हालत नही सुधारे तो आने वाली पीड़ी को श्वास लेने के लिए ओक्सीजन नही मिलेगी और नही बारिश होंगी |हाल में सुप्रीम कोर्ट ने तेंलगाना सरकार पर पेड़ो की अंधाधुध कटाई पर रोक लगा दी |
1.2 जल प्रदूषण
शहरों में नदियों, झीलों और भूमिगत जलस्रोतों का प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या बन चुका है। देहली में यमुना नदी में कचरा डाल कर इतना गन्दा कर दिया है की मवेशी और आदमी पानी नही पी सकते है कारखाने का केमिकल से जमींन तक खराव हो रही है सरकार अपने स्तर पर प्रयास करती है फिर भी समस्या बनी हुई है | घरेलू और औद्योगिक कचरे को बिना शुद्ध किए नालों द्वारा जल स्रोतों में बहा दिया जाता है। गंगा, यमुना, गोमती जैसी नदियाँ शहरों में भारी प्रदूषण का सामना कर रही हैं।धार्मिक रीति रिवाजों से भी कुभ मेला प्रयागराज में गंगा नदी में श्रदालु प्रसादी लेकर आते उसको बहुत बड़े पैमाने पर गंगा नदी में छोडा दिया जाता है |
1.3 ध्वनि प्रदूषण:
औद्योगिकीकरण: औद्योगिकीकरण ने ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि की है क्योंकि भारी मशीनरी जैसे कि जनरेटर, मिलों, विशाल निकास प्रशंसकों का उपयोग किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अवांछित शोर का उत्पादन होता है।
वाहन: सड़कों पर वाहनों की बढ़ी हुई संख्या ध्वनि प्रदूषण का दूसरा कारण है।
घटनायें: शादियों, सार्वजनिक समारोहों में संगीत बजाने के लिए लाउडस्पीकर शामिल होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पड़ोस में अवांछित शोर का उत्पादन होता है।निर्माण स्थल: खनन, इमारतों का निर्माण, आदि ध्वनि प्रदूषण में जोड़ते हैं।बढ़ते वाहनों, मशीनों, लाउडस्पीकरों और निर्माण कार्यों के कारण शहरी क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ गया है। ध्वनि प्रदूषण का सीधा प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य, नींद, और एकाग्रता पर पड़ता है।
1.4 ठोस अपशिष्ट और प्लास्टिक प्रदूषण:
भारत में हर वर्ष लगभग 4 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादित होता है, जिसमें से केवल एक चौथाई को ही पुनर्चक्रित या उपचारित किया जाता है। इस समस्या से निपटने के लिये सरकार ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (extended producer responsibility- epr) नियम लागू किये हैं, जहाँ निर्दिष्ट किया गया है कि प्लास्टिक उपयोगकर्त्ता अपने अपशिष्ट के संग्रहण एवं पुनर्चक्रण के लिये उत्तरदायी हैं। यह प्रणाली एक ऑनलाइन EPR ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से संचालित होती है, जहाँ पुनर्चक्रण करने वालों को पुनर्चक्रित प्लास्टिक के लिये प्रमाणपत्र प्राप्त होते हैं, जिन्हें वे कंपनियाँ खरीद सकती हैं जो अपने पुनर्चक्रण लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाती हैं।
हालाँकि, EPR प्रणाली को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2022-23 में लगभग 3.7 मिलियन टन पुनर्चक्रित प्लास्टिक प्रमाणपत्र सृजित हुए, लेकिन उनकी एक बड़ी संख्या जाली पाई गई। जबकि बाज़ार-संचालित दृष्टिकोण आशाजनक है, इसकी अपनी सीमाएँ हैं। भारत की प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या का समाधान करने के लिये न केवल पुनर्चक्रण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, बल्कि प्लास्टिक उत्पादन को कम करने और संवहनीय विकल्पों को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा| तेज़ी से बढ़ती शहरी आबादी के कारण ठोस कचरा प्रबंधन एक गंभीर समस्या बन गया है। प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग और उसका उचित निपटान न होना मिट्टी, जल और समुद्री जीवन को प्रभावित करता है।
2. प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
भारतीय शहरों में प्रदूषण का सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी, दिल की बीमारियाँ, और यहाँ तक कि कैंसर जैसे रोग बढ़ रहे हैं। बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए प्रदूषित वातावरण और भी अधिक घातक सिद्ध हो सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (who) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लाखों लोग वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले मृत्यु का शिकार होते हैं। इसके अलावा, जल प्रदूषण के कारण हैजा, डायरिया, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ फैलती हैं।
3. प्रदूषण का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
प्रदूषण के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को भी भारी क्षति होती है। बीमारियों पर बढ़ता स्वास्थ्य खर्च, कार्यबल की उत्पादकता में गिरावट, और पर्यटन उद्योग में नुकसान – ये सब आर्थिक दृष्टि से गंभीर हैं। साथ ही, समाज में असमानता बढ़ती है क्योंकि गरीब तबके के पास प्रदूषण से बचाव के साधन नहीं होते, जैसे शुद्ध जल, मास्क, एयर प्यूरीफायर, आदि।
सामाजिक प्रभाव:
स्वास्थ्य समस्याएं: प्रदूषण, विशेष रूप से वायु प्रदूषण, विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है, जैसे कि अस्थमा, श्वसन संबंधी बीमारियाँ, और हृदय रोग. हिंसक अपराध में वृद्धि: कुछ अध्ययनों से पता चला है कि प्रदूषण के संपर्क में आने से हिंसक अपराधों में वृद्धि होती है. बच्चों के शैक्षणिक परिणाम में गिरावट: प्रदूषण बच्चों के शैक्षणिक परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे उनके प्रदर्शन में कमी आ सकती है. उत्पादकता में कमी: प्रदूषण, खासकर वायु प्रदूषण, कार्यबल की उत्पादकता को कम कर सकता है, क्योंकि यह कर्मचारियों को बीमार कर सकता है और अनुपस्थित रहने के लिए प्रेरित कर सकता है।
आर्थिक प्रभाव:
कार्यबल की उत्पादकता में कमी: प्रदूषण से कर्मचारियों की अनुपस्थिति और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण कार्यबल की उत्पादकता कम हो जाती है, जिससे आर्थिक नुकसान होता है. सार्वजनिक स्वास्थ्य लागत में वृद्धि: प्रदूषण से जुड़े स्वास्थ्य मुद्दों के इलाज में सार्वजनिक स्वास्थ्य लागतों में वृद्धि होती है. पर्यावरण क्षरण के कारण क्षेत्रीय आकर्षण में गिरावट: प्रदूषण से पर्यावरण का क्षरण होता है, जिससे पर्यटन और अन्य आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आ सकती है. पर्यावरण सफाई की उच्च लागत: प्रदूषण को दूर करने के लिए सफाई की आवश्यकता होती है, जिसके लिए महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है. ऊर्जा की लागत में वृद्धि: प्रदूषण से उपकरण खराब हो सकते हैं और उन्हें मरम्मत या बदलने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे ऊर्जा की लागत बढ़ जाती है. प्रदूषण के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को भी भारी क्षति होती है। बीमारियों पर बढ़ता स्वास्थ्य खर्च, कार्यबल की उत्पादकता में गिरावट, और पर्यटन उद्योग में नुकसान – ये सब आर्थिक दृष्टि से गंभीर हैं। साथ ही, समाज में असमानता बढ़ती है क्योंकि गरीब तबके के पास प्रदूषण से बचाव के साधन नहीं होते, जैसे शुद्ध जल, मास्क, एयर प्यूरीफायर, आदि।
4. पर्यावरण और पारिस्थितिकीय तंत्र पर प्रभाव
प्रदूषण का प्रभाव केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण और जैव विविधता को भी प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण से पेड़-पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जबकि जल प्रदूषण से जलीय जीवन नष्ट हो रहा है। अनेक शहरों की नदियाँ और झीलें मर चुकी हैं, जिनका कभी जीवनदायिनी स्वरूप था।
5. प्रदूषण के प्रमुख शहरवार उदाहरण
दिल्ली:
भारत की राजधानी वायु प्रदूषण के लिए विश्व स्तर पर कुख्यात हो चुकी है। यहाँ नवंबर-दिसंबर में AQI 400 से ऊपर चला जाता है, जो खतरनाक श्रेणी में आता है।
मुंबई:
यहाँ कचरा प्रबंधन और जल प्रदूषण मुख्य समस्याएँ हैं। मीठी नदी, जो पहले जीवनदायिनी थी, अब एक नाले में बदल चुकी है।
कानपुर:
औद्योगिक शहर होने के कारण यहाँ चमड़ा उद्योग से निकलने वाला रासायनिक कचरा गंगा नदी को बुरी तरह प्रदूषित करता है।
6. सरकारी प्रयास और योजनाएँ
भारत सरकार और राज्य सरकारों ने प्रदूषण नियंत्रण हेतु कई योजनाएँ शुरू की हैं:
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): इसका उद्देश्य 2024 तक 102 शहरों में pm2.5 और pm10 स्तर को 20-30% तक कम करना है।
साफ़ भारत मिशन: शहरी क्षेत्रों में कचरे के प्रबंधन, स्वच्छता और शौचालय निर्माण पर जोर दिया गया।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT): यह संस्था पर्यावरणीय मामलों पर न्यायिक फैसले देती है और सख्ती से नियम लागू करती है।
इलेक्ट्रिक वाहन नीति: ईंधन चालित वाहनों की जगह बैटरी चालित वाहन को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे वायु प्रदूषण में कमी लाई जा सके।
7. समाधान और सुझाव
जन-जागरूकता: लोगों को पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है।
सार्वजनिक परिवहन का प्रोत्साहन: निजी वाहनों के बजाय मेट्रो, बस और साइकल जैसे पर्यावरण-अनुकूल साधनों का प्रयोग बढ़ाना चाहिए।
कचरा प्रबंधन: घर-घर से कचरा पृथक करने की व्यवस्था, रीसायक्लिंग और कंपोस्टिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
हरित क्षेत्र का विस्तार: शहरी इलाकों में अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने चाहिए ताकि हवा को शुद्ध किया जा सके।
सख्त नियमों का पालन: उद्योगों और निर्माण कार्यों पर प्रदूषण फैलाने पर जुर्माना और दंड लगाने के कानूनों को और कठोर बनाना चाहिए।
निष्कर्ष:
भारतीय शहरों में प्रदूषण एक गहराती हुई समस्या है, जो स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज को कई स्तरों पर प्रभावित कर रही है। यह आवश्यक है कि सरकार, समाज और प्रत्येक नागरिक मिलकर प्रदूषण के खिलाफ ठोस कदम उठाएँ। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो इसका प्रभाव हमारी आने वाली पीढ़ियों तक जाएगा। हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपने पर्यावरण को स्वच्छ, सुरक्षित और जीवनदायिनी बनाए रखने में सहयोग करे। तभी हम एक स्वस्थ, स्वच्छ और टिकाऊ भारत की कल्पना को साकार कर पाएँगे।
– डॉ. रोहितास मीना
एसोसिएट प्रोफेसर विधि विभाग, माधव विश्वविद्यालय, पिंडवाड़ा, सिरोही