भारत में जल संसाधन संरक्षण एवं संवर्धन

जल ही जीवन है, जल के बिना प्राणी जगत का जीवित रहना संभव नहीं है, जल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी प्राणियों एवं वनस्पतियों  का मुख्य आधार है पानी के बिना पौधे हो या बड़े वृक्ष हो, प्राणी हो या जीव जंतु हो यह सभी पानी से ही जीवित हैl प्राणी जीवन के शरीर में 60 से 70% तक जल पाया जाता हैl जल प्रकृति का सबसे अमूल्य संसाधन हैl जीवन की संपूर्ण जैविक क्रियाएं जल के द्वारा ही होती हैl जल मानवीय क्रियाओं को प्राचीनतम से वर्तमान समय में भी नियंत्रित करता हैl 

विश्व में 95 से 98% मानव सभ्यता का अधिवास जल स्रोतों जलाशयों के आस-पास बनाकर रहते है या फिर जल की उपलब्धता के अनुसार मानव  अपने  रहने  के लिए आवास बना लेते हैंl जल जीवन का परिपालन करता है और आर्थिक क्रियाओं का योगदान मुख्य रूप से जल के ऊपर ही निर्भर रहता है जल के बिना किसी भी मानव की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता है यदि आर्थिक स्थिति में सुधार की आवश्यकता होती है तो उतने ही जल की भी आवश्यकता पड़ती हैl मानव की आर्थिक स्थिति के सुधार में जल का महत्वपूर्ण योगदान रहता है जल एक अमूल्य संसाधन है इसलिए कहा जाता है कि जल जंगल और जमीन मानव के लिए महत्वपूर्ण हैl जल संपूर्ण स्थल मंडल के तत्वों के परिवहन एवं संचार के माध्यम से कार्य करता है जल में अनेक पदार्थ घुलनशील अवस्था में पाए जाते हैं जो की लवणता  एवं खाद्य पदार्थो पौधों के शरीर में प्रवाहित होते हैं जल से ही उद्योगों का निर्माण होता हैl बिना जल के बिना किसी भी उद्योग को स्थापित करना संभव नहीं है जहां पर भी उद्योग स्थापित किए जाते हैं उस स्थान पर पानी उपलब्ध होना अनिवार्य हैl

जल विद्युत उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण  प्राकृतिक संसाधन हैl आदिकाल से यह कहा जाता है कि अपनी एक पहचान है जल रोगों को दूर भगाता है और जल के कारण ही मनुष्यों का जीवन भी स्वच्छ एवं स्वस्थ रहता है क्योंकि हमें और दूसरे जीव जंतुओं को भी पृथ्वी पर जीवन को शक्ति देने में महत्वपूर्ण योगदान देता हैl पृथ्वी पर जीवन जारी रखना बहुत जरूरी है बिना पानी के किसी भी ग्रह पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती पूरे ब्रह्मांड का एक मात्र ऐसा ग्रह जहां पर पानी और जीवन मौजूद है इसलिए हमें अपने जीवन में पानी के महत्व को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए और ना ही हानि पहुंचाना चाहिए जिसने भी पानी को दरकिनार किया है या करने का प्रयास किया है वह मानव नहीं कहलाता हैl सभी मानव जल के प्रयोगों से ही अपने आप को अपने परिवार को अपने समाज को अपनी आर्थिक  स्थिति को सुदृढ़ करने का महत्वपूर्ण योगदान देता है बिना पानी के हम मानव इस पृथ्वी पर नहीं रह सकते हैंl ब्रह्मांड पर लगभग 71% जल है और 29 प्रतिशत भाग पर स्थल है फिर भी यह देखा जाता है कि स्थल भाग में पानी की कमी रहती है या होती है इसका मुख्य कारण यही है कि पृथ्वी पर अनेक प्रकार की खनिज संपदाओं पर्यावरण या अन्य कारकों को मानव प्रभावित करता है इसके लिए पानी की कमी होती है वर्तमान समय में मनुष्य अपनी सुविधा चाहता है अन्य मनुष्यों को ध्यान में नहीं रखा जाता हैl  उदाहरण के रूप में हम यह कह सकते हैं कि जल को संरक्षण करना लोगों की अच्छी आदत है  पीने के पानी और विश्व की जनसंख्या के अनुपात निकालें तो ज्यादातर लोग पृथ्वी के आंतरिक भाग को जैसी मिट्टी है उसके अनुरूप रहता है।

जल स्रोत                            

स्थलीय जल: पृथ्वी पर वायुमंडल के वृषण के समय में कुछ जल पृथ्वी कि सतह पर या धरातल पर पहुंचने के पूर्व वास्पिकरण हो जाता है और अधिकतम भाग सतही जल या धरातलीय जल स्रोतों के माध्यम से प्रवाहित हो जाते है जिसे हम  जल स्रोत कह सकते हैं।                            

सतही जल के स्रोत: वर्षा जल नदिया सरिताएं झरने  जलाशय हिमनद तालाब आदि।             

भूमिगत जल स्रोत: सतही जल  स्त्रोत जल के कुछ भाग भूमि के अंदर रिसकर  भूजल के रूप में संगठित हो जाता है जिसे हम भूमिगत जल स्रोत कहा जाता हैं जो कि मनुष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रहता है यदि पानी वर्षा के समय बहकर समुद्रों में चला जाता है उस स्थिति में पानी की कमी  होना संभव है भूमिगत जल स्रोत  को इस प्रकार से हम देख सकते हैं जैसे कि रिसन कुएं नलकूप बावड़ी उथले हुए गहरे कुएं आदि।                       

पेयजल की उपलब्धता: पृथ्वी पर विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जल कई किलोमीटर या कई मीटर में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराता है जो भारतवर्ष में स्वच्छता एवं पेयजल की उपलब्धता भूमिगत जल नदियां झिलो एवं तालाबों के द्वारा होती है। विश्व के 122 देशों में से भारत स्वच्छ जल की गुणवत्ता की दृष्टि से 120 वें स्थान पर है भारत जल संसाधन की दृष्टि से एक संपन्न देश  है जल संकट के  प्रमुख कारण निम्न है। जनसंख्या वृद्धि शहरीकरण औद्योगिकरण सिंचाई कृषि कार्य आदि इन उपर्युक्त कारणों से भूमि के जल की अत्यधिक क्षमता को दोहन के रूप में आवश्यकता से अधिक जल का संग्रहण गुणवत्ता के अनुसार जल का उपयोग करने से होता है जल संग्रहण विधि को नहीं अपनाने के कारण जल का अत्यधिक अपव्यय या नुकसान या हानि होने से पेयजल का उपयोग अन्य कार्य में करने से भी जल की आपूर्ति के लिए संकट उत्पन्न हो रहा है।                        

जल संरक्षण एवं संचय के उपाय: फसलों के लिए जल की आवश्यकता का निर्धारण किया जाना आवश्यक है। वर्षा काल के समय भंडारण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जल की कम मांग पानी वाली फसलों का उत्पादन करना चाहिए ताकि उत्पादन में कमी ना हो सके कृषि और अनुसंधानों की मदद लेना चाहिए। जल संरक्षण के लिए जल का पर्याप्त संरक्षण होना चाहिए दूषित जल का उचित उपचार किया जाना चाहिए समुद्री जल को शोधन कर कृषि कार्यों में उपयोग में लिया जाना चाहिए जिससे कि अनेक वीधियों की खोज होना चाहिए तेजी से बढ़ रही जनसंख्या पर नियंत्रण करके जल संसाधन समीक्षा का निदान किया जाना चाहिए अत्यधिक जल का उपयोग एवं दोहन के लिए कड़े से कड़े कानून की आवश्यकता होनी चाहिए जल संचय की विधियां जल सिंचाई के बारे में यदि देखा जाए तो यह महत्वपूर्ण है। प्रथम दृष्टिकोण से देखा जाए तो गड्ढे खोदकर खाई बनाकर रिचार्ज टैंक बनाकर आदि द्वारा जल को संचय किया जा सकता है।           

निष्कर्ष      निष्कर्ष स्वरूप में यह कहा जा सकता है कि केवल भारत ही नहीं पूरे विश्व में जल एक बहुत बड़ी मानवीय समस्या है इसके द्वारा ब्रह्मांड का 71% भाग जल होने के बावजूद भी 80% मनुष्य पीने के पानी की समस्या से जूझ रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व के सभी  जल स्रोतों से संबंधित विद्वानों को एकत्रित करने एवं विश्व के सभी देशों के जल संसाधन मंत्रालयों को एक साथ मिलकर एक बैठक रखकर खासकर नीति तैयार कर उसको क्रियान्वित किए जाने की आवश्यकता है। विश्व के सारे देश अपने राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर एक ठोस एवं क्रियाशील जल नीति बनाने में अपना सहयोग प्रदान करें अन्यथा पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। 

डॉ. देवेन्द्र मुझाल्दा , आचार्य भूगोल विभाग 

माधव विश्वविद्यालय, पिण्डवाड़ा, सिरोही, राजस्थान

By Madhav University

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